नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-20

कदंभ आखिर क्यों उस पूर्ण सभा में यक्ष और गंधर्वों के विषय में बार-बार बात को दोहराया जा रहा है?? क्या वाकई इस संपूर्ण सृष्टि में सुरक्षा का प्रभार यक्ष और गंधर्वों को ही सौंप दिया गया है। यदि हां तो फिर हमने तो यक्ष राज को प्रसन्न कर वरदान प्राप्त कर ही लिए हैं ।लेकिन फिर भी ऐसा लगता है जैसे अभी बहुत कुछ जानना शेष हैं।

तुमने तो इस सृष्टि में काफी भ्रमण भी किए है, और मुझसे कहीं ज्यादा अपना वक्त बिताया है। इसलिए अपने अनुभव से मुझे यक्षों के विषय में थोड़ी जानकारी प्रदान करो। ताकि यदि कभी ऐसी आवश्यकता पड़ी तो मैं उनकी सहायता किस प्रकार लूंगी??

तब कदंभ  कहने लगा,,,,,, लक्षणा तुम्हारी चिंता बिल्कुल सार्थक है। तुम्हें वाकई यह जानकारी होनी चाहिए और पृथ्वी लोक पर अभी भी यक्षों के विषयों में काफी लोग जानते भी हैं। और अपनी मन की इच्छा पूरी करने हेतु उनकी मदद भी लेते हैं। तुम्हें यह भी जानकर ताज्जुब होगा कि कहीं कहीं यक्षों की शक्ति देवताओं से भी बढ़कर नजर आती है, क्योंकि वे अपने कर्तव्य पथ पर हमेशा से डटे रहने वाले हैं। इस सृष्टि में यक्षों से कहीं ज्यादा यक्षिणीयों को स्वार्थ सिद्धि हेतु मानवों द्वारा पूजा जाता है।

क्या कदंभ यक्षिणीयां??वाकई यक्षिणीयों की भी कोई वास्तविकता है??यदि है तो यह कैसे आई?? इसकी सहायता हमें कैसे प्राप्त होती है। तब कदंभ ने विस्तारपूर्वक लक्षणा को बताना प्रारंभ किया....

वो एक गुरु की भांति लक्षणा को बता रहा था। वो कहने लगा कि कैसे ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के समय उसकी रक्षा हेतु अपने कमंडल से कुछ जल बूंदे पृथ्वी पर बिखेरी जहां तुरंत ही देव तुल्य मानव उपस्थित हो गए। तब ब्रह्माजी ने उन्हें आदेश देकर कहा.... हे गणों यह मेरी बनाई हुई सृष्टि अब मैं तुम्हें सौंपता हूं। अपना अपना कार्यभार संभाल लो। तब खुद गणों ने कहा। हे देव हम आपकी सृष्टि का रक्षण करेंगे जिन्हें आगे चलकर रक्षेण कहा गया। और जिन गणों ने प्रकृति की वृद्धि हेतु आदेश स्वीकार किया, वे आगे चलकर उसका यक्षण करने वाले अर्थात् यक्ष कहलाए।

ठीक वहीं दूसरी कथा के अनुसार जब सृष्टि की रक्षा हेतु भगवान कार्तिकेय के जन्म से पूर्व माता सती भगवान शिव की आराधना उन्हें प्राप्त करने हेतु कर रही थी। तब देवताओं के अनुरोध पर कामदेव भगवान शिव को प्रभावित करने का मन में विचार ले जब आगे बडा तो उसके मन में एक विचार आया कि क्यों न मैं माता सती को ही एक माध्यम बना लूं। मां तो मां हैं, और यदि वे चाहें तो शिवजी को भी मना लेगी। इससे हो सके मेरे प्राणों की रक्षा भी हो जाए। यही विचार कर उसने अपना पंचभूत बांध माता सती के ऊपर चला दिया। बिना यह विचार किए कि संपूर्ण सृष्टि के रचयिता माता सती पर भला ऐसे बाणों का क्या प्रभाव होगा।

उस समय उसके विनम्र आग्रह और जगत हित की भावना को देख एक सीख के साथ बिना क्रोधित हुए उन्हें क्षमा कर दिया। और पुनः अपनी साधना में लीन हो गए। अंततः कामदेव निराश होकर भगवान शिव की ओर रूख करना ही पड़ा। और वही त्रुटि उसने दोहराई। जिसका परिणाम सारा जग जानता है कि क्रोधित शिवजी ने पल भर में उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया। लेकिन वही जगत माता ने अपने ही दी हुई शक्ति का मान रखते हुए उन बाणों के प्रभाव को निरर्थक नहीं जाने दिया और उसके क्षणिक प्रभाव को स्वीकार किया। जिसका रंग उनके माथे पर कुछ पसीने की बूंदे आ गईं । जिसे उन्होंने छिड़ककर जैसे ही फेंका, वे पसीने की बूंदे शक्तिशाली गणिकाओं के रूप में प्रकट हुई।

यह सभी देव शक्ति का दूसरा स्वरूप है। ये वो यक्षिणीयां है। जो मानव जाति के बहुत करीब है। धर्म ग्रंथो के अनुसार चौसठ प्रकार के यक्ष और यक्षिणीयां है। जिनमें सिद्ध कर वे वह अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु आठ यक्षिणियों को प्रमुखता से पूजा जाता है जिसका वर्णन कुछ इस प्रकार है।

  1. सुर सुन्दरी यक्षिणी यह यक्षिणी सिद्ध होने के बाद साधक को ऐश्वर्य, धन, संपत्ति आदि प्रदान करती है।

  2. नटी यक्षिणी नटी यक्षिणी को विश्वामित्र ने भी सिद्ध किया था। यह अपने साधक कि पूर्ण रूप से सुरक्षा करती है।

3.अनुरागिणी यक्षिणी साधक पर प्रसन्न होने पर उसे नित्य धन, मान, यश आदि प्रदान करती है और साधक की इच्छा होने पर सहायता करती है।

4.कनकावती यक्षिणी कनकावती यक्षिणी को सिद्ध करने पर साधक में तेजस्विता आ जाती है। यह साधक की हर मनोकामना को पूरा करने में सहायक होती है।

5.कामेश्वरी यक्षिणी यह साधक को पौरुष प्रदान करती है और सभी मनोकामनाओं को पूरा करती है।

6.रति प्रिया यक्षिणी साधक और साधिका यदि संयमित होकर इस साधना को संपन्न कर लें तो निश्चय ही उन्हें कामदेव और रति के समान सौन्दर्य मिलता है।

  1. पद्मिनी यक्षिणी यह अपने साधक को आत्मविश्वास व स्थिरता प्रदान करती है और हमेशा उसे मानसिक बल प्रदान करती हुई उन्नति कि ओर अग्रसर करती है।

  2. मनोहारिणी यक्षिणी ये यक्षिणी सिद्ध होने पर साधक के व्यक्तित्व को ऐसा सम्मोहक बना देती है, कि हर व्यक्ति उसके सम्मोहन पाश में बंध जाता है।

इसलिए लक्षणा तुम यदि वाकई माता सती की उन शक्ति रुपी यक्षिणीयों को प्रसन्न कर उनका समर्थन प्राप्त कर लो तो अवश्य ही तुम्हारा मनोरथ पूर्ण होते देर नहीं लगेगी। लेकिन यह भी याद रखना जरूरी है, कि यक्षिणी इतनी आसानी से प्रसन्न भी नहीं होते। उनका क्रोध भी देवताओं के क्रोध से कोई कम नहीं। खासकर उन्हें वाद प्रतिवाद मनुष्यों के बुद्धि की परीक्षा लेना और संसार को जानने व देखने के दृष्टिकोण के विषय में प्रश्न करना ज्यादा पसंद होता है।

लक्षणा तुम्हें याद होगा कि,, पाण्डवों की परीक्षा उनके वनवास के समय एक यक्ष के द्वारा किस प्रकार ली गई थी। और सही उत्तर ना देने पर धनुर्धर अर्जुन जिस पर स्वयं नारायण की कृपा थी। महाबली भीम,सहदेव, नकुल इन चारों महावीरो का सही उत्तर न देने पर क्या हुआ था। वही युधिष्ठिर के सही जवाब देने पर तब कही उन्हें जीवनदान मिला।

मुझे याद आया लक्षणा कि मेरी शिक्षा के दौरान मुझे एक विशेष रक्षा यंत्र संपूर्ण रहस्य के साथ स्वयं नागराज ने सिखाया था।जिससे किसी भी यक्षिणी को सिद्ध किया जा सकता है। और उसमें मां , पत्नी बहन, या सखा किसी भी रूप में सिद्ध कर उनका सानिध्य और कृपा प्राप्त की जा सकती है। यह अत्यंत शक्तिशाली होती है। इसलिए अनिवार्य होने पर ही इनका आह्वान किया जाना चाहिए। लेकिन तब भी यदि कोई अपनी मर्जी से या खुद हमारी परीक्षा लेकर हम पर कृपा करना चाहे तो इस बात का अभिमान भी नहीं करना चाहिए।

क्रमशः.....

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1 Comments

Mohammed urooj khan

04-Nov-2023 12:33 PM

👍👍👍

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